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बुधवार, 18 जुलाई 2012

राजेश खन्ना को इतनी पसंद आई ठेले वाली चाय कि एक और पीने के बाद...!



राजेश खन्ना से जुड़ी यादों को साझा करते हुए दैनिक भास्कर ने लिखा है                       
                             हिन्दी सिनेमा के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना बुधवार को हम सबको छोड़कर चले गए। ‘अच्छा तो हम चलते है’, हमें और जीने की चाहत ना होती अगर तुम ना होते, मेरे नैना सावन भादो’ जैसे सुपरहिट गाने गुनगुनाते उनके फैन्स ने आंसुओं के साथ उन्हें श्रद्धांजलि दी। ‘जिंदगी प्यार का गीत है’ से काका ने सभी को हंसते गाते मुस्कराते जीना सिखाया, पर खुद ‘जै जै शिव शंकर’ के पास यही कहते हुए लीन हो गए कि ‘चला जाता हूं किसी की धुन में धड़कते दिल के तराने लिए’। उनके फैन्स से सिटी रिपोर्टर ने उनसे जुड़ी यादों को शेअर किया।

जयपुरवासियों के रहे दिल के करीब

ये लाल रंग, कब मुझे छोड़ेगा

वर्ष 1974 में बांद्रा के महबूब स्टूडियो में फिल्म ‘प्रेम नगर’ का गीत ‘ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा’ किशोर कुमार की आवाज में टेप हो रहा था। काका लीड रोल में होने से उन्हें फाइनल टेप सुनने को बुलाया गया। उस समय उन्होंने किशोर के भावों की तारीफ करते हुए अंत की पंक्तियों को दुबारा टेप करने को कहा था। काका ने कहा कि नशा और गम दोनों मुझे गिरा दें ऐसा फील चाहिए। यह कहना है जयपुर के सिंगर चन्द्र कटारिया का।

जयपुर में फिल्म धर्मकांटा

सुल्तान अहमद के निर्देशन में 1980-81 में जब वे फिल्म ’धर्म कांटा’ की शूटिंग पर राजकुमार, वहीदा रहमान, जीतेन्द्र के साथ जयपुर आए तो उन्होंने होटल क्लार्क्‍स आमेर में मुझसे (राज बंसल) आधे घंटे तक बात की। उन्होंने कहा था कि सफल होने के लिए सही सोच और सही मार्ग चुनना होता है। जिंदगी कांटों की तरह है। इसे फूल बनाने की कोशिश करो।

अच्छे दोस्त थे मेरे

फिल्म वितरक नारायण दास माखीजा कहते हैं कि खन्ना साहब मेरे अच्छे दोस्त थे। जब भी जयपुर आते तो मेरे घर जरूर आते और घंटों बातें करते थे। उनका स्वभाव ऐसा था कि प्यार करने वालों को खूब प्यार और घृणा करने वाले को देखना तक पसंद नहीं करते थे। वर्ष 1967 में नासिर हुसैन निर्देशित ‘बहारों के सपने’ फिल्म के दौरान उनसे मिला था।

हर सिनेमाघर में उनकी ही फिल्म

एक दौर था, जब शहर के हर सिनेमा घर में उनकी फिल्में ही परदे पर होती थीं। यह कहना है वरिष्ठ नाट्य निर्देशक साबिर खान का। वे कहते हैं वर्ष 1969 में ‘आराधना’, ‘इत्तफाक’, ‘बंधन’, ‘दो रास्ते’ सिनेमाघरों में रहीं। वहीं 1971 में ‘कटी पतंग’, ‘आनंद’, ‘आन मिलो सजना’, ‘अंदाज’, ‘मर्यादा’, ‘छोटी बहू’, ‘हाथी मेरे साथी’, ‘गुड्डी’, ‘महबूब की मेहंदी’, ‘बदनाम फरिश्ते’ रिलीज हुईं। उस समय लड़के उनकी जैसे हेयर स्टाइल रखने लगे थे।

मैं तो आपकी प्रतिध्वनि हूं

आरयू ड्रामा डिपार्टमेंट की हैड अर्चना श्रीवास्तव कहती हैं कि 1989 में जब मैं एनएसडी दिल्ली में थी, तब कनॉट पैलेस पर उनसे शूटिंग के दौरान मुलाकात हुई। उन्होंने एनएसडी स्टूडेंट के बारे में सुना तो कहा ‘राजस्थान का नाम ऊंचा करना बेटा।’ मैंने उनसे पूछा, सर आप परदे पर बड़े रंगीले और दूसरों को कुछ नहीं समझने वाले दिखते हो, पर यहां ऐसा नहीं है। इस पर उन्होंने कहा ‘मैं तो इंसान हूं, आपकी प्रतिध्वनि हूं, बस कर्म कर आगे बढ़ रहा हूं।’

जब मिला दादा फाल्के पुरस्कार

जनवरी, 2009 में पिताजी ओपी बंसल को दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिलना था, लेकिन तबीयत खराब होने की वजह से वे नहीं जा सके। मां और मैं पुरस्कार लेने गए तो राजेश खन्ना ने ही उन्हें पुरस्कृत करते हुए पूछा- बंसल साहब नहीं आए क्या? जब उन्हें तबीयत खराब होने के बारे में बताया तो काका ने सभागार में पिताजी के साथ संबंधों के बारे में प्रशंसा की। यह कहना है फिल्म वितरक सुनील बंसल का।


.वो ठेले वाली चाय और मैं

सुपरस्टार क्या होता है? यह राजेश खन्ना अच्छी तरह जानते थे। उनसे मेरी (अरुण किम्मतकर) मुलाकात ‘धर्मकांटा’ की शूटिंग के दौरान हुई। एक दिन उनके साथ गाड़ी में शूटिंग स्पॉट तक गया। उस दौरान उन्होंने गलता रोड पर एक ठेले के पास गाड़ी रुकवाकर कड़क चाय पीने को कहा। चाय इतनी पसंद आई कि उन्होंने दुबारा पी। फिर गाड़ी से उतरकर चाय वाले को 500 रु. दिए। चाय वाले ने मना कर दिया, तो भी उन्होंने उसकी जेब में डाल दिए।

जयपुर में रही हिट फिल्में

वर्ष 1969 में ‘दो रास्ते’, 1970 में ‘सच्चा झूठा’, ‘आराधना’, 1971 में ‘कटी पतंग’, ‘हाथी मेरे साथी’, 1972 में ‘अमर प्रेम’, 1974 में ‘आपकी कसम’, ‘रोटी’ सहित कई और फिल्मों ने शहर में सिल्वर जुबली सेलिब्रेशन मनाया।

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